राम सिया राम सिया राम, जय जय राम, राम सिया राम सियाराम, जय जय राम॥ मंगल भवन अमंगल हारी, द्रबहुसु दसरथ अजर बिहारी। ॥ राम सिया राम सिया राम...॥ होइ है वही जो राम रच राखा, को करे तरफ़ बढ़ाए साखा। ॥ राम सिया राम सिया राम...॥ धीरज धरम मित्र अरु नारी, आपद काल परखिये चारी। ॥ राम सिया राम सिया राम...॥जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरति देखी तिन तैसी। ॥ राम सिया राम सिया राम...॥ हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। ॥ राम सिया राम सिया राम...॥ रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई। ॥ राम सिया राम सिया राम...॥हि के जेहि पर सत्य सनेहू, सो तेहि मिलय न कछु सन्देहू। ॥ राम सिया राम सिया राम...॥
जब तक जिंदगी होगी, फुर्सत ना होगी काम से। कुछ समय ऐसा निकालो, प्रेम करो श्रीराम से ।।

हनुमान जी की आरती


॥ आरती हनुमान जी की ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥

जाके बल से गिरवर काँपे ।
रोग-दोष जाके निकट न झाँके ॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई ।
संतन के प्रभु सदा सहाई ॥

दे वीरा रघुनाथ पठाए ।
लंका जारि सिया सुधि लाये ॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई ।
जात पवनसुत बार न लाई ॥

लंका जारि असुर संहारे ।
सियाराम जी के काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे ।
लाये संजिवन प्राण उबारे ॥

पैठि पताल तोरि जाग कारे ।
अहिरावण की भुजा उखारे ॥
बाईं भुजा असुर संहारे ।
दाईं भुजा सब संत उबारें ॥

सुर नर मुनि जन आरती उतरें ।
जय जय जय हनुमान उचारें ॥
कचंन थाल कपूर की बाती ।
आरती करत अंजनी माई ॥

जो हनुमानजी की आरती गावे ।
बसहिं बैकुंठ परम पद पावे ॥
लंक विध्वंस किये रघुराई ।
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ॥

आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जब तक जिंदगी होगी, फुर्सत ना होगी काम से। कुछ समय ऐसा निकालो, प्रेम करो श्रीराम से ।।